कहने को तो मात्र एक लोकसभा और दो विधानसभा सीट के उपचुनावों के नतीजे हैं लेकिन तीनों ही सीटों का जनादेश, सभी दलों को बड़ा संदेश देने वाला है। चाहे सत्ताधारी भाजपा हो या फिर मुख्य विपक्षी पार्टी सपा, दोनों ने ही उपचुनाव में एक-दूसरे को बड़े झटके दिए हैं। नतीजे जिस तरह के आए हैं उससे उपचुनाव के मैदान से दूर रही बसपा और कांग्रेस के लिए तो निकाय चुनाव ही नहीं लोकसभा चुनाव की राह भी और कठिन होती दिख रही है।
- 80 लोकसभा और 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा का ही दबदबा रहा है। चाहे लोकसभा का चुनाव रहा हो या फिर विधानसभा का, भाजपा ही सत्ता में वापसी करती रही है।
- चूंकि उपचुनाव से बसपा और कांग्रेस दूर रही इसलिए सीधी लड़ाई में भाजपा और सपा अपनी-अपनी जीत दर्ज कराकर नगरीय निकाय और लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा संदेश देना चाहती थी। इसके लिए सत्ताधारी भाजपा और सपा ने उपचुनाव में पूरी ताकत लगाई।
- भाजपा जहां सपा के कब्जे वाली मैनपुरी लोकसभा और रामपुर विधानसभा सीट पर अबकी जीत दर्ज कराकर यह संदेश देना चाहती थी कि उसकी डबल इंजन की सरकार के बेहतर कामकाज से भविष्य के चुनाव में भी विपक्ष कहीं टिकने वाला नहीं है वहीं सपा अपनी इन दोनों सीटों को बरकरार रखने के साथ ही खतौली विधानसभा सीट को भाजपा से छीनकर यह बताना चाह रही थी कि चाहे किसान हो या आम जनता सभी सरकार से त्रस्त हैं।
- नतीजों से साफ है कि दोनों ही दल अपने मकसद में कुछ हद तक ही कामयाब हो सके हैं।
- कांग्रेस और बसपा की गैर मौजूदगी में हुए उपचुनाव की सीधी लड़ाई में सपा-रालोद गठबंधन के हाथों खतौली सीट गंवाना भाजपा के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। मुजफ्फरनगर की खतौली सीट पर जमीनी मुद्दों के दम पर जीत का परचम लहराकर सपा-रालोद गठबंधन यह संदेश देने में कामयाब रहा कि भाजपा के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राह आज भी आसान नहीं है।
- खतौली के मतदाताओं ने गठबंधन के प्रत्याशी को जिताकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि कहीं न कहीं वे सरकार के कामकाज से खुश नहीं हैं। दूसरी तरफ भाजपा ने सपा की परम्परागत मुस्लिम बहुल सीट रामपुर में पहली बार भगवा फहराकर बता दिया है कि अब मुसलमानों के लिए भाजपा अछूत नहीं है।
- खासतौर से पसमांदा (पिछड़े) मुसलमान अब उसके साथ हैं। ऐसे में मुस्लिम सिर्फ सपा या बसपा-कांग्रेस के साथ अब नहीं रहने वाले हैं। गौरतलब है कि रामुपर लोकसभा सीट के उपचुनाव में भी भाजपा ने पहली बार जीत दर्ज कराई थी।
- मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में सपा को मिले ऐतिहासिक जनादेश से स्पष्ट है कि चाचा शिवपाल को साथ लेने का सीधा फायदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को मिला है। मुस्लिम-यादव ही नहीं अन्य समाज के मतदाताओं ने भी बिना बंटे अबकी सपा का साथ दिया है।
- बसपा की गैर मौजूदगी में दलितों में सेंध लगाने में भी सपा कामयाब दिख रही है। उपचुनाव के नतीजों से यह संदेश भी मिलता है कि अगर अखिलेश ने पूर्व के विधानसभा चुनाव से लेकर उपचुनाव में भी शिवपाल को अब की तरह तव्वजो दी होती तो शायद तस्वीर कुछ और ही होती।
- खतौली सीट जीतकर सपा ने यह भी बता दिया है कि वह भाजपा को हराने में सक्षम है। पूर्व के उपचुनाव में सपा के हारने पर बसपा प्रमुख मायावती कहती रही हैं कि भाजपा को हराने में सपा सक्षम नहीं है। आजमगढ़ लोकसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा से हारने पर सपा ने बसपा को जिम्मेदार ठहराया था। अब सपा के जीतने से मुस्लिम समाज के साथ ही अन्य भाजपा विरोधियों का भी उसकी तरफ ही झुकाव बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है जिससे बसपा और कांग्रेस के लिए नगरीय निकाय व लोकसभा चुनाव की राह और कठिन होती दिख रही है।